
समय-समय पर इसमें और पहेलियाँ जुड़ती रहेंगी।
1. साथ-साथ मैं चलती हूँ,
पर पकड़ नहीं सकते हो तुम।
अंधियारा छाते ही देखो,
गायब होती मैं गुमसुम।
-परछाईं
(रचनाकार- रानी पात्रिक)
विदेश में रहते हुए, बच्चों में हिन्दी के प्रति प्यार जगाने वाले सभी अभिभावकों को समर्पित
ये तो जबाब भी साथ ही दे दिया..क्या बूझें?
ReplyDeleteखूबसूरत पहेली । शायद पहेलियाँ संग्रहित करने का प्रयास है यह ।
ReplyDeleteआपका बहुत-बहुत धन्यवाद। आपका एक-एक शब्द हौसला बढ़ाते हैं।
ReplyDeleteउड़न तश्तरी जी, एक दूसरी पहेली शीघ्र पोस्ट करूंगी तब बूझिएगा।
हिमांशु जी, आपने ठीक पहचाना। जब मैं अपने बच्चों के लिए ढ़ूढ़ती थी तो पहेलियाँ और उनके उत्तर साथ-साथ मिलते ही नहीं थे कि बच्चों को सिखाए जा सकें। यह एक प्रयास भर है, बच्चों को सिखाने योग्य हिन्दी चीज़ो को इकट्ठा करने का।
सार्थक प्रयास..
ReplyDeleteमजेदार पहेली, चित्र और भी मजेदार मजा आ गया।
ReplyDeleteहिन्दी के लिये आप का योगदान काफी मह्त्वपूर्ण है.
ReplyDeletetitar ka aage do titar titar ke piche do titar batao kitne titar
ReplyDeletethree