Saturday, May 23, 2009

पहेलियाँ




समय-समय पर इसमें और पहेलियाँ जुड़ती रहेंगी।


1. साथ-साथ मैं चलती हूँ,
पर पकड़ नहीं सकते हो तुम।
अंधियारा छाते ही देखो,
गायब होती मैं गुमसुम।

-परछाईं
(रचनाकार- रानी पात्रिक)

7 comments:

  1. ये तो जबाब भी साथ ही दे दिया..क्या बूझें?

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  2. खूबसूरत पहेली । शायद पहेलियाँ संग्रहित करने का प्रयास है यह ।

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  3. आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। आपका एक-एक शब्द हौसला बढ़ाते हैं।

    उड़न तश्तरी जी, एक दूसरी पहेली शीघ्र पोस्ट करूंगी तब बूझिएगा।

    हिमांशु जी, आपने ठीक पहचाना। जब मैं अपने बच्चों के लिए ढ़ूढ़ती थी तो पहेलियाँ और उनके उत्तर साथ-साथ मिलते ही नहीं थे कि बच्चों को सिखाए जा सकें। यह एक प्रयास भर है, बच्चों को सिखाने योग्य हिन्दी चीज़ो को इकट्ठा करने का।

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  4. सार्थक प्रयास..

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  5. मजेदार पहेली, चित्र और भी मजेदार मजा आ गया।

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  6. हिन्दी के लिये आप का योगदान काफी मह्त्वपूर्ण है.

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  7. titar ka aage do titar titar ke piche do titar batao kitne titar

    three

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