आर्या और मम्मी का प्रिय खेल (ज़मीन पर चौक से चित्र बनाना)
गर्मी की छुट्टियाँ व्यस्त रहीं और समय कहाँ सरक गया पता ही नहीं चला। इस बीच अनेक लोग हमारे पन्ने पर आए। कुछ ने टिप्पणियाँ छोड़ीं और कुछ यूँ ही सरसरी निगाह डाल कर चल दिए। मैं ह्दय से आप सभी के प्रति अपना आभार व्यक्त करती हूँ।
गर्मियों में यहाँ-वहाँ की घुमाई के साथ-साथ बहुत से घरेलू काम भी किए गए। मंगोड़ी-बड़ी बनाने से ले कर अचार-पापड़ तक हमने यहाँ विदेश में बनाए। इस सबके पीछे उद्देश्य केवल यह था कि बच्चे वह माहौल देखें और अनुभव करें जो हमने बड़े होते समय भारत में किया था। एक सहज सुन्दर, दौड़-भाग से दूर आपस में होने का माहौल। मज़े कि बात यह कि बच्चे भी इन कार्य कलापों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं जैसे कोई विशेष आयोजन या पर्व हो।
13 सितम्बर से हिन्दी की कक्षाएँ पुनः आरम्भ हुईं। इस बार हमारी कक्षा में एक बच्चा तमिल भाषी भी है। मेरा मन उन सभी माता-पिता के प्रति आदर से भर उठता है जो हिन्दी अपनी भाषा न होते हुए भी उसके प्रति आदर भाव रखते हैं तथा उसे सीखने के लिए अपने बच्चों को प्रेरित करते हैं।
पिछली कक्षा में सभी बच्चे आए देख मेरा मन उत्साह से भरा हुआ था। हमने 'ओ' की मात्रा वाले सभी शब्दों के अर्थों का अभ्यास किया तथा 'ओ' की मात्रा पर आधारित लोकेश और खरगोश पाठ को पढ़ा। कुछ गाने गाए। रेलगाड़ी-रेलगाड़ी बच्चों का अभी तक का सबसे प्रिय गाना है।

'नवरात्रि का त्यौहार' पाठ के कठिन शब्दों पर फिर से कार्य किया गया। हाथी और दर्जी के बेटे की कहानी करनी का फल सुनी गयी। इसके साथ ही आ गई विदा की घड़ी। इन्हीं शब्दों के साथ आज आपसे भी विदा लूंगी- आगे आते रहने के वादे के साथ।
बहुत अच्छा कार्य है इसी बहाने बच्चे अपनी संस्कृति से जुड़े रहेंगे और उसे जानेंगे. वैसे तो आज के बच्चे भारत में ही बड़ी/पापड़ और घर का बना अचार/मुरब्बा भूलते जा रहे हैं.
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा...........
ReplyDeleteआपके लिए हार्दिक शुभ कामनाएं........
हिन्दी के प्रचार-प्रसार में संलग्न
ReplyDeleteरानी पात्रिक को बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
बहुत बढिया प्रयास है शुभकामनाएं।
ReplyDeleteविदेश में आप हिन्दी के प्रसार के साथ ही भारतीय परिवेश एवम संस्कृति का भी प्रसार कर रही हैं----आपका यह कार्य काबिले तारीफ़ है।
ReplyDeleteपूनम
रानी जी,
ReplyDeleteबच्चों को भारतीय सन्स्कृति से जोड़ने का आपका यह कार्य वाकई--प्रसंशनीय है।यदि आप चाहें तो वहां बच्चों को हिन्दी शिक्षण के दौरान मेरे बच्चों वाले ब्लाग"फ़ुलबगिया" से भी सहायता ले सकती हैं।इस ब्लाग का लिंक मेरे ब्लाग पर ऊपर ही लगा है।
साथ ही यदि वहां बच्चे कुछ क्रियेटिव (लिखना,चित्र बनाना आदि) करते हैं तो उसे भी आप मेरे पास भेज सकती हैं।उन्हें मैं फ़ुलबगिया पर प्रकाशित कर सकता हूं। साथ में बच्चों का परिचय और फ़ोटो भी भेज दीजियेगा।
शुभकामनाओं के साथ्।
हेमन्त कुमार
बहुत बढिया प्रयास है
ReplyDeleteaane wali peedhi ko sanskaron se jode rahne ka kaam aap bakhubi kar rahi hain
ReplyDeleteहिन्दुस्तान से अलग दुसरे देश में रहकर हिंदी को जीवित रखना बहुत बड़ा कार्य है ,...पोर्टलेंड में रहकर आपने ये बहुत खूबसूरत काम किया है ....साथ ही हिन्दुस्तानी तहजीब और संस्कृति को भी सिखाना ....बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर ....मै खुद भी हिंदी और उर्दू की मुरीद हूँ ...बेहद सभ्य भाषाएं हैं ये .... खुशामदीद
ReplyDeleteहिन्दी के प्रचार-प्रसार में इस गंभीरता से लगे रहने के लिए
ReplyDeleteरानी पात्रिक को बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
आपके प्रयास हिन्दी प्रेम की असली मिसाल हैं। इनकी जितनी प्रशंसा की जाए कम है।
ReplyDelete----------
डिस्कस लगाएं, सुरक्षित कमेंट पाएँ
Deepawali ki dheron shubkamnayn.
ReplyDeleteआपकी बातें, अहिन्दी भाषियों को हिन्दी सिखाना अच्छा लगा
ReplyDeleteकार के ऊपर सूखती मगोड़ियाँ भी अच्छी लगीं
वाह मज़ा आ गया कार के ऊपर सूखती मँगोड़ियाँ देखकर लगता है बिल्ली और कौवों से मुक्त है आपका शहर। भई, थोड़ी मंगोड़ियाँ इधर भी। पैट्रिक को जन्मदिन की बधाई!! और हाँ केक बनाया हो तो उसकी फोटो लगाना मत भूलना।
ReplyDeleteबहुत अच्छा काम कर रही हैं।क्या मैं आपकी कुछ मदद कर सकती हूँ।
ReplyDelete