आज अपने इस पन्ने का आरम्भ मैं अपने तीनों बच्चों को धन्यवाद दे कर करना चाहूँगी जिन्होंने मुझे एक माँ ही नहीं बल्कि एक टीचर बनने का सुअवसर भी दिया। इसके साथ ही उन सभी अभिभावकों को अपना धन्यवाद दूँगी जिन्होंने मुझमें अपना विश्वास दिखाया और अपने बच्चों में हिन्दी के प्रति प्यार बढ़ाने का एक अद्भुद कदम उठाया।
१९९२ में जब मैं विवाहित हो कर यू एस ए आई तब सब कुछ पीछे छूट जाने के बाद भी मेरी भाषा और संस्कृति अवश्य मेरे साथ सात समुन्दर पार आई और इस विदेशी परिवेश में मेरी अन्तरंग सहेली बन कर अब तक मेरा साथ निभाती आयी है। पिछले चौदह वर्षो से हिन्दी सिखाने की भी अपनी एक यात्रा रही है। अपनी इस यात्रा का ताना बाना अब अगली बार बुनूँगी
Tuesday, April 28, 2009
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