Saturday, June 20, 2009

गर्मी की छुट्टियाँ

भारत में जहाँ गर्मी की छुट्टियाँ समाप्त होने को हैं वहीं यहाँ यू. एस. में गर्मी की छुट्टियाँ अब शुरू हुयी हैं। जहाँ घर बच्चों की चहल-पहल से गुंजायमान है वहीं हमारा प्यारा ब्लाग सुषुप्तावस्था में चला गया है, फिर भी समय निकालते हुए चलते जाना है-

पिछले हफ्ते हमारी हिन्दी कक्षा में कुछ बच्चों के भारत जाने तथा एक छात्रा के देर से हिन्दी क्लास तक पहुँचने के कारण, कक्षा की शुरूआत कुछ सूनी सी लगी। माँ सरस्वती की वंदना के बाद गृहकार्य दिखाने की जिज्ञासा सभी में थी। मैं आश्चर्य चकित थी एक लड़की के काम को देख, जिसने एक पूरा पन्ना भर के हिन्दी लिखी थी। इस छात्रा को हिन्दी सीखते अभी केवल तीन ही महिने हुए हैं साथ ही बताना चाहूँगी कि इस छात्रा की माँ तो भारतीय पर पिता श्वेत अमेरिकन हैं। मैंने मन ही मन नमन किया उस माँ को और उसकी बेटी के इस अनमोल प्रयास को। ईश्वर इनकी हिन्दी के प्रति जोड़ी गयी सभी अभिलाषाएं पूरी करे।

पिछले हफ्ते “ऐ” से आरम्भ होने वाले शब्दों को एक बार फिर दोहराया गया। लगभग 30 शब्दों के अर्थ पूछे और सुनें गए तथा बच्चों ने मौखिक रूप से उन शब्दों के वाक्य बनाए। बच्चों में एक होड़ थी एक दूसरे से अच्छा वाक्य बनाने की। इन्हीं शब्दों पर आधारित मेरे द्वारा बनाया गया पाठ “रमा और मामा जी” पढ़ा गया।

चित्र में रंग भरा आर्या ने

और हम कैसे भूलते अपनी लम्बी सी रेलगाड़ी को। रेलगाड़ी चली और खूब चली। हमारे उन सभी पाठकों का ह्दय से धन्यवाद जिन्होंने पिछले हफ्ते हमारी इस रेलगाड़ी पर यात्रा की और टिप्पणियाँ छोड़ीं। आपकी टिप्पणियाँ हमारा उत्साह बढ़ाने के लिए इंजन में ईंधन की तरह हैं।

नाटक “नादान कौए” का अभ्यास किया गया। अगले सप्ताह फादर्स डे की छुट्टी रहेगी और उसके पश्चात हमारी इस वर्ष गर्मी की छुट्टियों से पहले की अन्तिम कक्षा लगेगी। इस अन्तिम कक्षा में सभी बच्चे अपने माता पिता के समक्ष कुछ हिन्दी गानों और नाटक का प्रदर्शन करेंगे। इसलिए कक्षा के अन्त में सब बच्चों के साथ मिल जुल कर यह निर्णय लिया गया कि क्या और किस क्रम में प्रस्तुत किया जाए।
इसके बाद एक बार फिर आ गई विदा की घड़ी।

धन्यवाद बाय-बाय नमस्ते
फिर मिलेंगे अगले हफ्ते

इसे गाते-गाते हम सबने एक दूसरे से विदा ली, पर इस बार अगले से अगले हफ्ते तक के लिए ..........

Monday, June 8, 2009

रेलगाड़ी-रेलगाड़ी

चित्र- आर्या


पिछले हफ्ते इस गाने को हम लोगों ने अपनी हिन्दी की कक्षा में सीखा। हम लोगों ने रेलगाड़ी बनायी और लम्बी कतार में दौड़ते हुए इस गाने को कई बार गाया और सभी बच्चों को बहुत आनन्द आया।


रेलगाड़ी-रेलगाड़ी,
लम्बी सी रेलगाड़ी।

बच्चों मेरे पीछे आओ,
लम्बी सी कतार बनाओ।

गार्ड झंडी दिखलाएगा,
सिगनल डाउन हो जाएगा।

तब सीटी मारेगा इंजन,
छुक-छुक-छुक-छुक करेगा इंजन।

झट पीछे-पीछे आना,
गाड़ी के डिब्बे बनना।

हल्ला-गुल्ला सरपट दौड़,
बच्चों तब होगा एक शोर।

देखो-देखो रेल है आई,
सबको स्टेशन पर लाई।

बच्चों खत्म हुआ यह खेल,
आओ बनाएं फिर से रेल।

रचना- रानी पात्रिक

Thursday, June 4, 2009

३१ मई, २००९ की कक्षा


पिछले हफ्ते हमारी हिन्दी की कक्षा अपने नियत दिन, नियत समय पर आरम्भ हुयी। पति के शहर में ना होते हुए भी मेरे बच्चों के साथ और सहयोग ने मुझे सारी चिन्ताओं से दूर हिन्दी कक्षा के लिए तैयार कर दिया था।

हर बार की तरह इस बार भी कक्षा सरस्वती वंदना से आरम्भ हुयी। इसके पहले कुछ और करते बच्चों की लम्बी लाइन हमें गृह कार्य दिखाने के लिए उत्सुक थी। हंसी मज़ाक के साथ हम उनकी त्रुटियों को समझाते और सुधारते रहे।

इसके पश्चात आओ गाएं के क्रम में हमने “वसंत है आता” तथा “रेलगाड़ी-रेलगाड़ी, लम्बी सी रेलगाड़ी” गानों का भरपूर आनन्द उठाया।

फिर आई नाटक की बारी। इस बार सभी बच्चों ने न केवल “नादान कौवे” नाटक का अभ्यास किया अपितु हास्य नाटिका की गंम्भीरता को भी समझा।

इस बार ए की मात्रा का अंतिम दिन था इसलिए एक बार पुनः अब तक सीखी गयी सभी मात्राओं का पुनर्भ्यास किया गया। इस कड़ी में एक बात पर विषेश बल दिया गया कि “ग़लती करने से ना डरो, दूसरों की नकल बिना समझे मत करो।” बच्चों ने पूर्ण आत्मविश्वास के साथ अपने मात्रा ज्ञान का परिचय दिया। कुछ एक दो त्रुटियों को छोड़ कर सभी का काम सराहनीय रहा।

आज हमारे हिन्दी परिवार के दो बच्चे गर्मी की छुट्टियाँ होने से पहले अन्तिम बार कक्षा में आए। उनसे बिछुड़ते हुए मन भारी था पर साथ ही वह बच्चे भारत जा रहे थे इसलिए उनको विदा करते हुए मन में एक उत्साह भी था। एक संतोष सा था कि यह बच्चे जो भी आज तक सीखते रहे उस हिन्दी ज्ञान का प्रयोग वह भारत में कर सकेंगे तथा बहुत कुछ और भारत से सीख कर आएंगे, हम सबके साथ बांटने, हमारी हिन्दी कक्षा में।

कक्षा समाप्त होने पर बच्चों ने सभी अभिभावकों के समक्ष वसंत है आता गाने की सुन्दर प्रस्तुति की और हमने एक दूसरे से विदा ली अगले हफ्ते तक के लिए।

Wednesday, June 3, 2009

ये उम्र और लंगड़ी



आज एक पूरा हफ्ता निकल गया कोई ब्लाग नहीं लिखा गया। तो प्रश्न है कि “आखिर क्यों नहीं लिखा गया?”
अकस्मात् बस एक ही उत्तर दिमाग में कौंधता है और वह यह कि- “जी लंगड़ी खेल रहे थे।“ तो ये लिजिए एक और प्रश्न सामने आ खड़ा होता है- “ये उम्र और लंगड़ी?”

सच! कितना मज़ा आता था बचपन में लंगड़ी खेलने का। छठी-सातवीं कक्षा। स्कूल समाप्त होने के बाद, स्कूल के ही सामने चौरसिया जी के घर पर जमे लंगड़ी खेल में शामिल होने से नहीं चूकते थे। पाँच मिनट के लिए ही सही। गलियारे से लम्बे खिंचे घर जहाँ सूरज कभी चुप-छुप के ही झांकता होगा। अंधियारी, तरावट भरी कोठरियों में एक दूसरे के पीछे दौड़ती हम सभी दोस्तें भूतों की तरह लंगड़ी खेलते थे। थोड़े समय में ज्यादा आनन्द लूटने की वह उम्र कुछ और ही होती है।

पर यहाँ विदेश में लंगड़ी?

यहाँ विदेश में घर के अन्दर-बाहर सभी काम निपटाते सुबह से शाम कब हो जाती है पता ही नहीं चलता। कुछ काम पति संभालता है तो कुछ काम पत्नी। ऐसे में यदि दोनों में से एक भी शहर से बाहर हो तो भाई टांगे तो दो ही हैं ना। आधा काम एक टांग करती है तो आधा दूसरी, और आप मानें या ना मानें अनजाने में ही इस आपाधापी में बच्चों को उठाए-लटकाए हम लंगड़ी खेलते नज़र आते हैं। अब ये हम पर है कि इस लंगड़ी का आनन्द हम लें या न लें। सच बात तो यह है कि जीवन की संध्या हमें सचमुच की लंगड़ी खिलाने लगे इससे पहले हम इस लंगड़ी का भी भरपूर आनन्द उठाएँ इसी में जीवन का असली आनन्द है।

पर इस सबके बावजूद हिन्दी की कक्षा अपने नियत समय पर रविवार के दिन पूरे उत्साह के साथ हुयी। उसके बारे में अगली बार....

नमस्कार।