Sunday, November 14, 2010

बाल दिवस पर सीखो आज


बच्चों, इतनी सी है बात
बाल दिवस पर सीखो आज

सदा-सदा तुम चलते जाना
पढ़ते-लिखते, बढ़ते जाना
बाधाओं से डर मत जाना
सच्चाई का देना साथ
बच्चों इतनी सी है बात
बाल दिवस पर सीखो आज

रोते लोगों को हंसवाना
बूढ़ों का नित साथ निभाना
अपनेपन का बोध बांटना
मन में ऐसी बांधो गाँठ
बच्चों इतनी सी है बात
बाल दिवस पर सीखो आज

सदा स्वार्थ के विष से बचना
पर ख़ुद को भी कम न समझना
साहस से हर कदम उठाना
मन में ले ईश्वर का साथ
बच्चों इतनी सी है बात
बाल दिवस पर सीखो आज

मन में द्वेष कभी ना लाना
बात बात पर न इतराना
सुसंस्कृत,संयत तुम बनना
मन में ऐसी मेरी साध
बच्चों इतनी सी है बात
बाल दिवस पर सीखो आज

Monday, May 3, 2010

इनके संग तुम जी कर देखो




कितने सुन्दर हैं ये बच्चे,
कितने प्यारे, बड़े निराले,
इनके संग तुम घुल मिल खेलो,
मन के सारे दुःख हर लेंगे।

इनके मन के भाव निराले,
चंचल, निर्मल, कुछ मतवाले,
इनके संग कुछ बातें कर लो,
मन उजला और हलका देंगे।

बच्चों के मासूम इरादे,
डर के कच्चे, मन के पक्के,
इनके संग तुम चल कर देखो,
मन को दृढ़ता से भर देंगे।

बच्चे एक अनकही कहानी,
जीवन जीने की है ठानी,
इनके संग तुम जी कर देखो,
जीवन में नवरंग भर देंगे।

दुःख कम हो, मन ठंढा हो ले,
दृढ़ता और रंगों को भर लें,
बच्चों की चंचल बातों को,
मासूमी के अफ़सानों को,
अपने मन की गहराई में,
रख कर हम जीवन जी लेंगे।

Monday, March 1, 2010

फागुन आया



फागुन आया, फागुन आया,
आओ मिल सब खेलें होली।
रंग लगाएं, धूम मचाएं,
हम बच्चों की है ये टोली।


हर घर में और हर गली में,
हम बच्चों के दंगे होंगे।
ढोल बजेंगे और नाचेंगे,
होली के हुदड़ंगे होंगे।


रंग खेलेंगे, रंग डालेंगे,
सराबोर रंगों में होंगे।
मन के सारे भेद भुला कर,
सभी जनों से गले मिलेंगे।


नये-नये वस्त्रों में सजधज,
एक दूजे के घर जाएंगे।
अबीर गुलाल के टीके लगा कर,
स्वागत और सत्कार करेंगे।


सारे दिन के बाद तो अब बस,
पकवानों की बारी है।
गुझिया, सेव, मिठाई, मठरी
होली की तैयारी है।

चित्र- इन्टरनेट से

Sunday, February 7, 2010

सलमान ख़ान की राय

हम विदेश में रहते हुए भी अधिक से अधिक बच्चों को मनोरंजक ढंग से हिन्दी सिखाने में जुटे हुए हैं पर पिछले दिनों टी. वी. के एक कार्यक्रम को देख मन बड़ा दुःखी हुआ।

यह कार्यक्रम था- लिफ्ट करा दे। जिसमें सलमान ख़ान साहब किसी दुःखी व्यक्ति के लिफ्ट के लिए आए हुए थे। कार्यक्रम के अन्त में वह उस व्यक्ति को अपनी दान धर्म का परिचय कराते हुए उसके इलाज का तथा उसके बच्चों की स्कूली पढ़ाई आदि का खर्चा अपने ऊपर लेते हुए सलाह देते हैं कि वह अब अपने बच्चों को किसी अंग्रेज़ी स्कूल में पढ़ाए। अगर वह यह कहते कि वह किसी अच्छे स्कूल में अपने बच्चों को पढ़ाए तो अच्छा लगता फिर वह अंग्रेज़ी हो या हिन्दी। पर इस तरह अन्तराष्ट्रीय टी.वी. पर अपनी राय अंग्रेज़ी स्कूल के लिए देना हिन्दी स्कूलों का घोर अपमान है। क्या मेरा ऐसा सोंचना ग़लत है? यह मेरे जैसे बिना किसी विशेष आय के बावजूद हिन्दी सिखाने वालों को हतोत्साहित ज़रूर करता है।