हम विदेश में रहते हुए भी अधिक से अधिक बच्चों को मनोरंजक ढंग से हिन्दी सिखाने में जुटे हुए हैं पर पिछले दिनों टी. वी. के एक कार्यक्रम को देख मन बड़ा दुःखी हुआ।
यह कार्यक्रम था- लिफ्ट करा दे। जिसमें सलमान ख़ान साहब किसी दुःखी व्यक्ति के लिफ्ट के लिए आए हुए थे। कार्यक्रम के अन्त में वह उस व्यक्ति को अपनी दान धर्म का परिचय कराते हुए उसके इलाज का तथा उसके बच्चों की स्कूली पढ़ाई आदि का खर्चा अपने ऊपर लेते हुए सलाह देते हैं कि वह अब अपने बच्चों को किसी अंग्रेज़ी स्कूल में पढ़ाए। अगर वह यह कहते कि वह किसी अच्छे स्कूल में अपने बच्चों को पढ़ाए तो अच्छा लगता फिर वह अंग्रेज़ी हो या हिन्दी। पर इस तरह अन्तराष्ट्रीय टी.वी. पर अपनी राय अंग्रेज़ी स्कूल के लिए देना हिन्दी स्कूलों का घोर अपमान है। क्या मेरा ऐसा सोंचना ग़लत है? यह मेरे जैसे बिना किसी विशेष आय के बावजूद हिन्दी सिखाने वालों को हतोत्साहित ज़रूर करता है।
Sunday, February 7, 2010
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यही तो हमारी मानसिकता है!
ReplyDeleteधिक्कार!
अफसोसजनक है.
ReplyDeleteधन्यवाद शास्त्री जी और उड़न तश्तरी जी। आपके शब्दों ने मरहम का काम किया है। हिन्दी सिखाने की यात्रा जारी रहेगी पर डर लगता है जीवन के किसी मोड़ पर यह ना लगे कि जीवन व्यर्थ गंवाया।
ReplyDeleteआपको एसी बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए और उस काम में लगे रहें जिसे करने का बीड़ा उठाया है।
ReplyDeleteआप अपना कार्य जारी रखें. हम आपके साथ हैं. पहले भारत में मुगल आए उन्होने थोड़ा नुकसान किया. फ़िर अंग्रेज आए. इन्हों ने काफ़ी नुकसान किया फ़िर ये "इंडियन" आए और देश को खाए जा रहे हैं. और इन्होने अंग्रेजों और मुगलों का भी रिकार्ड तोड़ दिया.
ReplyDeleteनोट: यहां पर "इंडियन" का अर्थ "भारतीय" के रूप में ना लें. सामान्यत: इंडियन उन भारत में रहने वालों को कहा जा सकता है जो अंग्रेजी बोलते हैं, पहनते हैं, चलते हैं, खाते है, सोते हैं और हिन्दी भाषिओं को निकृष्ट मानते हैं. हमारे मंत्रीमंडल में तथा देश के शीर्ष व्यापारियों में आपको ज्यादातर इंडियन ही मिलेंगे. भई, लोग नौकरी के लिए इन्ही लोगों के पास जाते हैं और नौकरी में अंग्रेजी की अनिवार्यता इन्ही लोगों के द्वारा थोपी जाती है.
=== एक बात और कहना चाहूंगा कि अंग्रेजी का मुकाबला अंग्रेजी का विरोध करके नही बल्कि हिन्दी को शक्तिशाली बनाकर किया जा सकता है. इसके लिए हर बुद्धिजीवी और पढ़े लिखे व्यक्ति को अंग्रेजी का ज्ञान हिन्दी में करने हेतु कार्य करना होगा.
धन्यवाद संजय और अंकुर जी, लगे तो हैं पर आशा की किरण कहीं दूर दूर तक नहीं दिखती। पर क्या पता अगली पिढ़ियाँ ज़्यादा जागरूक हो और वह अपने लोगों द्वारा की गयी गलतियों को सुधारें। हम तो रास्ता बना रहे हैं ताकि बाद में आने वाले सुविधा पूर्वक उस पर चल सकें। आपके मूल्यवान शब्दों के लिए धन्यवाद।
ReplyDeleteरानी जी, आपका सोचना बिल्कुल सही है। यह हमारे देश का दुर्भाग्य ही तो कहा जायेगा कि यहां की आम जनता तो छोड़िये नेता,अभिनेता,उद्योगपति,यहां तक कि हिन्दी के बड़े विद्वान भी अपने बच्चों का दाखिला अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में कराते हैं-----जबकि वो चौबीसों घण्टे हिन्दी का दम भरते हैं। पूनम
ReplyDeleteपूनम जी, व्यस्तत जीवन से समय निकाल कर इस पन्ने तक आने और अपने बहुमुल्य विचार लिखने के लिए धन्यवाद। आपके शब्द निःसंदेह रूप से मेरा हौसला बढ़ाएंगे। हिन्दी कक्षा तो निरन्तर चल रही है पर बच्चों के साथ व्यस्त जीवन होने के कारण ब्लाग जगत तक आना नहीं हो पा रहा है।
ReplyDeleteबहुमूल्य ग़लत टाइप हो गया जिसके लिए क्षमा चाहूँगी।
ReplyDeleteरानी जी, आपका सोचना बिल्कुल सही है।
ReplyDeleteदेखते हैं टिप्पणी प्रकाशित होती है या नहीं।
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