हम विदेश में रहते हुए भी अधिक से अधिक बच्चों को मनोरंजक ढंग से हिन्दी सिखाने में जुटे हुए हैं पर पिछले दिनों टी. वी. के एक कार्यक्रम को देख मन बड़ा दुःखी हुआ।
यह कार्यक्रम था- लिफ्ट करा दे। जिसमें सलमान ख़ान साहब किसी दुःखी व्यक्ति के लिफ्ट के लिए आए हुए थे। कार्यक्रम के अन्त में वह उस व्यक्ति को अपनी दान धर्म का परिचय कराते हुए उसके इलाज का तथा उसके बच्चों की स्कूली पढ़ाई आदि का खर्चा अपने ऊपर लेते हुए सलाह देते हैं कि वह अब अपने बच्चों को किसी अंग्रेज़ी स्कूल में पढ़ाए। अगर वह यह कहते कि वह किसी अच्छे स्कूल में अपने बच्चों को पढ़ाए तो अच्छा लगता फिर वह अंग्रेज़ी हो या हिन्दी। पर इस तरह अन्तराष्ट्रीय टी.वी. पर अपनी राय अंग्रेज़ी स्कूल के लिए देना हिन्दी स्कूलों का घोर अपमान है। क्या मेरा ऐसा सोंचना ग़लत है? यह मेरे जैसे बिना किसी विशेष आय के बावजूद हिन्दी सिखाने वालों को हतोत्साहित ज़रूर करता है।
Sunday, February 7, 2010
Subscribe to:
Posts (Atom)