यह पोस्ट पिछली पोस्ट का हिस्सा है इसलिए इस पोस्ट में छिपे भाव को समझने के लिए पिछली पोस्ट अवश्य पढ़े।
मेरा दुःखी मन पार्क में अब और रूकने को तैयार नहीं था। इसलिए मैं सामने स्थित एक पब्लिक लाइब्रेरी में चली गयी। मुझे भारतीय वस्त्रों में देख एक लड़की मेरी तरफ आकर्षित हुयी। देखने में तो वह भारतीय नहीं लगती थी पर न जाने कितनी ही बातें वह मुझसे भारत के बारे में करती रही। आखिरकार मुझसे पूछे बिना रहा नहीं गया कि आखिर वह भारत के बारे में इतना कैसे जानती है। तब उसने बताया कि उसके पिता भारतीय (मुम्बई से) हैं और उसकी माँ ग्रीक। फिर यकायक उसने मुझसे पूछा कि मैं अपने बेटे को हिन्दी सिखा रही हूँ या नहीं। उसने अनजाने ही मेरी दुःखती रग पर हाथ रखा था। मेरा मन जो पहले ही भरा हुआ था अपने को रोक न सका और मैंने कुछ पल पहले बीती सारी घटना उससे कह सुनाई और यह भी बताया कि अब आगे मुझे अपने बेटे को हिन्दी सिखाने में कोई रूचि नहीं है।
वह बड़े ध्यान से मेरी सारी बात सुनती रही फिर बड़े अपनेपन से मेरा हाथ अपने हाथों में ले कर बोली- “मैं तुम्हारा दुःख समझ सकती हूँ पर हिन्दी न सिखाने की गलती कभी ना करना। मेरे माता-पिता ने मुझे अपनी-अपनी भाषाएं नहीं सिखाईं जिसके कारण सारे पारिवारिक आयोजनों का हिस्सा हो कर भी मैं स्वयं को वहाँ एक अजनबी सा महसूस करती थी। वो लोग क्या बोलते और क्या हंसी-मज़ाक किया करते थे मैं कभी समझ ही नहीं सकी। मुझे जन्म तो मिला पर परिवार की अनुभूति कभी हुई ही नहीं।“
उसकी बातों से मैं सहम गई। हिन्दी न सिखाने के प्रति लिया गया मेरा फैसला अपनी सच्चाई का विभत्स रूप लिए सामने खड़ा दिखाई दिया। मैंने उसकी आँखों में देखा। उसकी हिन्दी न जानने की पीड़ा मेरी आज की घटना से मिली वेदना से कहीं अधिक थी। मैंने बिना हिन्दी सिखाए अपने बच्चों को भी उस लड़की की जगह खड़े पाया। वह लड़की ईश्वर द्वारा भेजा हुआ एक फ़रिशता सी लगी जिसने मुझे गलत राह पर चलते ही मुझे सम्हाल लिया था। मेरे दुःख के बादलों से आई बदली ने ऐसी बरसात की जिससे मेरी सारी पीड़ा धुल गयी। एक नया सूरज चमक रहा था। एक नया उत्साह था और इतना साफ था- “चाहें जितनी बाधाएं आएं हमें अपने बेटे को हिन्दी सिखाना ही है।“
Tuesday, May 12, 2009
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आप सही कहती हैं। परिवार की भाषा जो न सीखे वह परिवार से जुड़े कैसे? आप ने तो उसे यह न सिखा कर अपने से ही दूर कर दिया।
ReplyDeleteअच्छा हुआ आपको सही समय पर सही सलाह मिल गई। भगवान सबकी ऐसे ही सहायता करता रहे।
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