विदेश में हिन्दी सीखना और सिखाना, भारत में अंग्रेज़ी सीखने से कहीं अधिक कठिन होता है। भारत में हर जगह अंग्रेजी के बोर्ड, किताबें, समाचार पत्र आदि उपलब्ध होते हैं। चेतना आते ही बच्चा अंग्रेजी के अक्षर अपने आसपास देखने लगता है जब कि यहाँ विदेशों में हिन्दी का कोई माहौल ही नहीं होता। हिन्दी के अक्षर कहीं दिखते ही नहीं ।
एक दिन मैं एक प्रदर्शिनी देखने गयी। उस प्रदर्शनी में एक बड़ा सा पंडाल विभिन्न प्रकार के डायनासॉर का भी था। मैं उस पंडाल में घुसने ही वाली थी कि तभी मेरी दृष्टि प्रवेश द्वार के पास रक्खे कुछ लकड़ी के बक्सों पर पड़ी। उन पर हिन्दी के अक्षर लिखे हुए थे। कहीं न दिखने वाले हिन्दी के अक्षर इतने अपने लगे कि मैं डायनसॉर भूल कर अपने बच्चों को वो लकड़ी के बक्से दिखाने लगी। बच्चे भी उत्साहित हो उन अक्षरों को पढ़ने लगे। हमारे परिवार को बक्सों के पास देख कुछ और लोग उत्सुकता वश आए। कुछ लोग छोटे बच्चों को एक अजनबी भाषा पढ़ते देख आनन्द लेने लगे। उस छोटी सी भीड़ को देख कुछ और लोगों ने उत्सुकता वश अपने सिर उस भीड़ में घुसाए और देखते ही देखते वह छोटी सी भीड़ बड़ी होने लगी। मैं आनन्दित हो रही थी अपने बच्चों को देख जो बड़े गर्व के साथ लोगों को पढ़-पढ़ बता रहे थे कि उन बक्सों पर क्या लिखा था।
आप भी उत्सुक होंगे कि आखिर उन बक्सों पर ऐसा क्या विशेष लिखा था। उन पर लिखा था- भारत की स्वादिष्ट दार्जिलिंग चाय।
इतना अवश्य है- हमारा हिन्दी के प्रति उत्साह दूसरों में भी कहीं न कहीं उत्सुकता अवश्य जगाता है।
Saturday, May 16, 2009
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अंग्रजी तो अभी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है .. सभी देशों में इसके अक्षर से लोग परिचित होंगे ही .. पर यूएसए के अन्य नागरिक हिन्दी को तबतक महत्व नहीं देंगे .. जबतक उन्हें भारत से खास तरह की जरूरत न पड जाए .. पर यूएसए या अन्य देशों में रहनेवाले हिन्दी भाषी तो कम से कम हिन्दी को महत्व दें .. इतना ही अभी काफी है .. पर विडम्बना है कि यह भी नहीं होता है।
ReplyDeleteवाह वाह चाय का मज़ा आ गया वह भी हिन्दी में। नई घटना पढ़ने की उत्सुकता बनी रहेगी।
ReplyDeletebahut hi achi vichaar dhara hai aapki..
ReplyDeleteअल्पना जी नमस्कार,
ReplyDeleteबहुत सुंदर काम कर रही है, लेकिन यह हिन्दी सीखना इतना कठिन नही, जितना आप ने बताया, बस टीचर के संग मां बाप को भी कोशिश करनी चाहिये.
मेरे बच्चे यहां जन्मे है, ओर बिना टिचर के हिन्दी पढ लेते है, ओर बोलने की तो बात ही क्या.
अब आप सोच रही होगीकि यह अल्पना केसे लिख दिया तो मै शव्दो से ही सब को पहचान लेता हुं
धन्यवाद
मुझे शिकायत है
पराया देश
छोटी छोटी बातें
नन्हे मुन्हे